
UP SCHOOL CLOSED NEWS -उत्तर प्रदेश बेसिक शिक्षा विभाग की स्कूल मर्जर नीति 2025 ने अभिभावकों और शिक्षकों में चिंता पैदा कर दी है। 50 से कम बच्चों वाले स्कूलों को बंद करने के फैसले का विरोध क्यों हो रहा है? पढ़ें पूरी खबर।
उत्तर प्रदेश में बेसिक शिक्षा स्कूल मर्जर नीति 2025: अभिभावकों और शिक्षकों में आक्रोश
उत्तर प्रदेश में बेसिक शिक्षा विभाग द्वारा हाल ही में जारी एक आदेश ने पूरे राज्य में हलचल मचा दी है। इस आदेश के अनुसार, जिन प्राथमिक स्कूलों में 50 से कम बच्चे पढ़ते हैं, उन्हें नजदीकी अन्य सरकारी स्कूलों में मर्ज या पेयरिंग के जरिए समायोजित कर दिया जाएगा। इसका मतलब है कि ऐसे स्कूलों में पढ़ाई बंद हो जाएगी, और वहां के बच्चे और शिक्षक अन्य स्कूलों में स्थानांतरित होंगे। सरकार का यह फैसला 30 जून 2025 तक लागू करने के लिए कहा गया है, और अनुमान है कि इस नीति से 5,000 से अधिक स्कूल प्रभावित होंगे। इस निर्णय ने शिक्षकों और अभिभावकों में आक्रोश और चिंता पैदा कर दी है।
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स्कूल मर्जर नीति का आधार और सरकारी तर्क
बेसिक शिक्षा विभाग ने इस नीति को संसाधनों के बेहतर उपयोग और शिक्षा प्रणाली को सुव्यवस्थित करने के लिए जरूरी बताया है। सरकारी पक्ष का कहना है कि जहां 50 बच्चे भी नहीं पढ़ते, वहां स्कूल चलाने का कोई औचित्य नहीं है। इसके बजाय, इन स्कूलों को मर्ज करके संसाधनों का अधिकतम उपयोग किया जाएगा। बंद होने वाले स्कूलों का उपयोग आंगनबाड़ी केंद्रों या अन्य सरकारी योजनाओं के लिए किया जा सकता है।
शिक्षकों का आक्रोश: स्कूल बंद करना समाधान नहीं
शिक्षक संगठनों ने इस नीति का कड़ा विरोध किया है। उनका कहना है कि स्कूल बंद करने के बजाय उन स्कूलों में बच्चों का नामांकन बढ़ाने पर ध्यान देना चाहिए। शिक्षकों के अनुसार, बेसिक शिक्षा में बच्चों का नामांकन लगातार घट रहा है, और इसके पीछे कई कारण हैं। एक प्रमुख कारण यह है कि सरकारी स्कूलों के आसपास निजी स्कूलों को खोलने की अनुमति दी गई, जो नियमों का उल्लंघन है।
शिक्षक संगठनों का यह भी आरोप है कि इस नीति से भविष्य में शिक्षकों के पद कम हो सकते हैं, जिससे नई भर्तियों की संभावना और कम हो जाएगी। उत्तर प्रदेशीय प्राथमिक शिक्षक संघ के प्रदेश अध्यक्ष सुशील कुमार पांडेय ने कहा, “शिक्षा के अधिकार अधिनियम के तहत गांव-गांव में स्कूल खोले गए थे। अब इन्हें बंद करना न केवल बच्चों, बल्कि शिक्षकों और अभिभावकों के अधिकारों का हनन है।”
अभिभावकों की चिंता: बच्चों की पढ़ाई पर खतरा
अभिभावकों के लिए यह नीति और भी चिंताजनक है, खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में। गांवों में स्कूलों की भौगोलिक दूरी बढ़ने से छोटे बच्चों, विशेषकर बालिकाओं, के लिए स्कूल जाना मुश्किल हो जाएगा। ग्रामीण क्षेत्रों में सीमित संसाधनों वाले परिवार अपने बच्चों को निजी स्कूलों में नहीं भेज सकते। इसके लिए ही सरकार ने मिड-डे मील, मुफ्त किताबें, जूते-मोजे और बैग जैसी योजनाएं शुरू की थीं, ताकि बच्चे स्कूल तक पहुंच सकें।
अभिभावकों का कहना है कि अगर स्कूल 2-3 किलोमीटर दूर हो जाएंगे, तो बच्चे नियमित रूप से स्कूल नहीं जा पाएंगे। बरसात या सर्दियों जैसे मौसम में यह समस्या और गंभीर हो जाएगी। नई शिक्षा नीति 2020 भी कहती है कि प्राथमिक स्कूल बच्चों के घर से जितना करीब हो, उतना बेहतर। लेकिन यह नीति उस सिद्धांत के खिलाफ जाती दिख रही है।
निजी स्कूलों को अनुमति: नियमों का उल्लंघन?
शिक्षकों और अभिभावकों ने एक और गंभीर सवाल उठाया है। नियमों के अनुसार, सरकारी स्कूलों के नजदीक निजी प्राथमिक स्कूलों को खोलने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। लेकिन पूरे उत्तर प्रदेश में इस नियम का उल्लंघन धड़ल्ले से हुआ है। शिक्षकों का कहना है कि निजी स्कूलों को सरकारी स्कूलों के पास खोलने की अनुमति देकर सरकारी स्कूलों को कमजोर किया गया, जिससे नामांकन घटा और अब मर्जर की नौबत आई।
विरोध और आंदोलन
इस नीति के खिलाफ शिक्षक संगठन और अभिभावक सड़कों पर उतर आए हैं। कई जिलों में धरना-प्रदर्शन हो रहे हैं, और शिक्षक संगठनों ने चेतावनी दी है कि अगर यह आदेश वापस नहीं लिया गया, तो वे बड़ा आंदोलन करेंगे। सोशल मीडिया पर भी इस मुद्दे को लेकर तीखी बहस चल रही है।
क्या है समाधान?
शिक्षकों और अभिभावकों का सुझाव है कि स्कूल बंद करने के बजाय नामांकन बढ़ाने के लिए अभियान चलाए जाएं। ‘स्कूल चलो’ जैसे अभियानों ने पहले अच्छे नतीजे दिए थे। इसके अलावा, निजी स्कूलों को सरकारी स्कूलों के पास खोलने की अनुमति देने वाले अधिकारियों पर कार्रवाई की मांग भी उठ रही है।
मर्जर नीति का प्रभाव: एक नजर में
पहलू | प्रभाव |
---|---|
स्कूलों की संख्या | 5,000 से अधिक स्कूल बंद हो सकते हैं। |
बच्चों पर असर | स्कूलों की दूरी बढ़ने से नामांकन और उपस्थिति घटने की आशंका। |
शिक्षकों पर असर | भविष्य में शिक्षक पदों में कमी और नई भर्तियों की संभावना कम। |
निजी स्कूलों का लाभ | सरकारी स्कूलों के कमजोर होने से निजी स्कूलों को फायदा। |
सरकारी तर्क | संसाधनों का बेहतर उपयोग और शिक्षा प्रणाली को सुव्यवस्थित करना। |
निष्कर्ष
उत्तर प्रदेश की बेसिक शिक्षा स्कूल मर्जर नीति 2025 ने शिक्षा के दो सबसे बड़े हितधारकों—शिक्षकों और अभिभावकों—को चिंता में डाल दिया है। स्कूल बंद करने का यह फैसला न केवल शिक्षा के अधिकार अधिनियम, बल्कि नई शिक्षा नीति के सिद्धांतों के खिलाफ भी माना जा रहा है। सरकार को चाहिए कि वह इस नीति पर पुनर्विचार करे और बच्चों के नामांकन बढ़ाने के लिए ठोस कदम उठाए। शिक्षा हर बच्चे का अधिकार है, और इसे सुनिश्चित करना सरकार की जिम्मेदारी है।

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