
UP SCHOOL CLOSED NEWS TODAY,लखनऊ में स्कूल मर्जर के खिलाफ विरोध प्रदर्शन: एनएसयूआई और कांग्रेस की मांगें
उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ हाल ही में उस समय सुर्खियों में आया, जब एनएसयूआई (नेशनल स्टूडेंट्स यूनियन ऑफ इंडिया) और कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने राज्य सरकार की स्कूल मर्जर नीति के खिलाफ विधानसभा घेराव के लिए पैदल मार्च शुरू किया। इस प्रदर्शन में हजारों कार्यकर्ताओं ने हिस्सा लिया, जो 5000 से अधिक प्राथमिक स्कूलों को मर्ज करने के सरकारी फैसले का विरोध कर रहे थे। यह नीति, जिसके तहत कम नामांकन वाले स्कूलों को पास के अन्य स्कूलों में मिलाया जा रहा है, शिक्षा के मौलिक अधिकार पर हमला माना जा रहा है। इस लेख में हम इस प्रदर्शन, इसकी मांगों, और उत्तर प्रदेश की शिक्षा नीति पर इसके प्रभाव को विस्तार से समझेंगे।
स्कूल मर्जर नीति: क्या है पूरा मामला?
उत्तर प्रदेश सरकार ने बेसिक शिक्षा विभाग के माध्यम से एक नीति लागू की है, जिसके तहत 50 से कम या 20 से कम छात्रों वाले प्राथमिक और उच्च प्राथमिक स्कूलों को पास के अन्य स्कूलों में मर्ज किया जा रहा है। सरकार का तर्क है कि इससे शिक्षक-छात्र अनुपात बेहतर होगा और संसाधनों का बेहतर उपयोग हो सकेगा। साथ ही, खाली होने वाले स्कूल भवनों को बाल वाटिका, रीडिंग कॉर्नर, या खेल मैदान के रूप में विकसित करने की योजना है।
हालांकि, शिक्षक संगठनों, विपक्षी दलों, और छात्र संगठनों का कहना है कि यह नीति शिक्षा के अधिकार को कमजोर कर रही है। खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में, जहां स्कूलों की दूरी पहले से ही अधिक है, यह नीति बच्चों, विशेषकर गरीब और वंचित वर्ग की छात्राओं, के लिए शिक्षा तक पहुंच को और मुश्किल बना देगी।
लखनऊ में एनएसयूआई और कांग्रेस का विरोध प्रदर्शन
लखनऊ में 1 जुलाई 2025 को एनएसयूआई कार्यकर्ताओं ने कांग्रेस के साथ मिलकर विधानसभा घेराव का आह्वान किया। इस प्रदर्शन का नेतृत्व एनएसयूआई मध्य जोन के अध्यक्ष अनस रहमान ने किया। कार्यकर्ताओं ने कांग्रेस पार्टी कार्यालय से विधानसभा की ओर मार्च शुरू किया, लेकिन पुलिस ने बैरिकेडिंग लगाकर उन्हें रोकने की कोशिश की। इस दौरान बैरिकेडिंग तोड़ने और पुलिस के साथ धक्का-मुक्की की घटनाएं भी सामने आईं।
प्रदर्शनकारियों ने नारेबाजी करते हुए सरकार पर शिक्षा विरोधी नीतियों का आरोप लगाया। एनएसयूआई के छात्र नेता आदित्य सिंह ने कहा, “5000 से अधिक सरकारी स्कूलों को बंद करने का फैसला बच्चों के भविष्य पर हमला है। हम सरकार को चेतावनी देते हैं कि अगर यह नीति वापस नहीं ली गई, तो उग्र आंदोलन होगा।”
प्रदर्शनकारियों की मांगें
प्रदर्शनकारियों ने सरकार से निम्नलिखित मांगें रखी हैं:
मांग | विवरण |
---|---|
स्कूल मर्जर नीति रद्द करें | 5000+ प्राथमिक स्कूलों को बंद करने का फैसला तत्काल रद्द किया जाए। |
शिक्षकों की भर्ती | नए शिक्षकों की भर्ती शुरू की जाए और रिक्त पदों को भरा जाए। |
संसाधनों में सुधार | कम नामांकन वाले स्कूलों में शिक्षकों और संसाधनों की व्यवस्था की जाए। |
शिक्षा का अधिकार सुनिश्चित करें | ग्रामीण और वंचित क्षेत्रों में स्कूलों की पहुंच को बनाए रखा जाए। |
गैर-शैक्षणिक कार्यों पर रोक | शिक्षकों को गैर-शैक्षणिक कार्यों से मुक्त किया जाए। |
इन मांगों के साथ, प्रदर्शनकारी यह भी चाहते हैं कि सरकार शिक्षा को निजीकरण की ओर ले जाने के बजाय सरकारी स्कूलों को मजबूत करे। उनका कहना है कि यह नीति न केवल बच्चों के भविष्य को खतरे में डाल रही है, बल्कि शिक्षकों के रोजगार और स्थायित्व को भी प्रभावित कर रही है।
स्कूल मर्जर का प्रभाव
स्कूल मर्जर नीति के कई संभावित प्रभाव हैं, जो निम्नलिखित हैं:
- शिक्षा तक पहुंच में कमी: ग्रामीण क्षेत्रों में स्कूलों की दूरी बढ़ने से बच्चों, खासकर गरीब और दलित वर्ग की छात्राओं, के लिए स्कूल जाना मुश्किल हो जाएगा।
- शिक्षकों की नौकरी पर खतरा: मर्जर के कारण शिक्षकों का समायोजन अन्य स्कूलों में किया जा सकता है, जिससे उनकी नौकरी की सुरक्षा और स्थायित्व प्रभावित होगा।
- बाल श्रम को बढ़ावा: स्कूलों के बंद होने से बच्चों के पास पढ़ाई का विकल्प कम होगा, जिससे बाल श्रम की संभावना बढ़ सकती है।
- शिक्षा का निजीकरण: सरकारी स्कूलों के बंद होने से निजी स्कूलों को बढ़ावा मिलेगा, जो गरीब परिवारों के लिए वहन करना मुश्किल है।
सरकार का पक्ष
उत्तर प्रदेश सरकार और बेसिक शिक्षा विभाग का कहना है कि स्कूल मर्जर नीति का उद्देश्य संसाधनों का बेहतर उपयोग और शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार करना है। गोरखपुर के बेसिक शिक्षा अधिकारी (बीएसए) के अनुसार, “कम छात्र संख्या वाले स्कूलों को पास के स्कूलों में मर्ज करने से शिक्षक-छात्र अनुपात बेहतर होगा। खाली भवनों को बाल वाटिका, रीडिंग कॉर्नर, या खेल मैदान के रूप में विकसित किया जाएगा।”
सरकार का यह भी दावा है कि यह नीति राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 के तहत है, जो समावेशी और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा पर जोर देती है। हालांकि, शिक्षक संगठनों और विपक्ष का कहना है कि यह नीति शिक्षा के मौलिक अधिकार (RTE Act, 2009) का उल्लंघन करती है, जो 6 से 14 वर्ष के बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार देता है।
विपक्ष और शिक्षक संगठनों की राय
विपक्षी दलों, खासकर कांग्रेस और समाजवादी पार्टी (सपा), ने इस नीति को शिक्षा विरोधी करार दिया है। सपा नेता अखिलेश यादव ने आरोप लगाया कि “स्कूल मर्जर का फैसला उन क्षेत्रों में लिया जा रहा है, जहां बीजेपी चुनाव हारती थी।” वहीं, उत्तर प्रदेशीय प्राथमिक शिक्षक संघ के अध्यक्ष सुनील कुमार पांडे ने कहा, “यह नीति शिक्षकों और छात्रों के हितों के खिलाफ है। सरकार को इसे तत्काल रद्द करना चाहिए।”
भविष्य की दिशा
लखनऊ में एनएसयूआई और कांग्रेस का यह प्रदर्शन स्कूल मर्जर के खिलाफ चल रहे व्यापक आंदोलन का हिस्सा है। पूरे प्रदेश में शिक्षक संगठन, छात्र संगठन, और विपक्षी दल इस नीति के खिलाफ सड़कों पर उतर रहे हैं। शिक्षक संगठनों ने 5 जुलाई 2025 से धरना-प्रदर्शन और ब्लैक बैज आंदोलन की चेतावनी दी है, साथ ही विधानसभा सत्र के दौरान लखनऊ में राज्य-स्तरीय रैली की योजना बनाई है।
कांग्रेस और एनएसयूआई ने स्पष्ट किया है कि वे इस लड़ाई को सड़क से संसद तक ले जाएंगे। उनका कहना है कि यह नीति न केवल शिक्षा को कमजोर कर रही है, बल्कि समाज के गरीब और वंचित वर्गों को उनके अधिकारों से वंचित कर रही है।
निष्कर्ष
लखनऊ में स्कूल मर्जर के खिलाफ एनएसयूआई और कांग्रेस का विरोध प्रदर्शन उत्तर प्रदेश की शिक्षा नीति पर एक बड़ा सवाल खड़ा करता है। यह प्रदर्शन न केवल सरकारी नीतियों के खिलाफ एक आंदोलन है, बल्कि शिक्षा के मौलिक अधिकार को बचाने की लड़ाई भी है। सरकार को इस नीति पर पुनर्विचार करने और शिक्षकों, छात्रों, और अभिभावकों की चिंताओं को गंभीरता से लेने की जरूरत है। क्या सरकार इस प्रदर्शन के बाद अपने फैसले पर विचार करेगी, या यह आंदोलन और तेज होगा? यह आने वाला समय ही बताएगा।

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