UP Primary Teacher Vacancy |प्राथमिक स्कूलों में नामांकन और शिक्षक भर्ती परीछा: 6 वर्ष की आयु सीमा पर सवाल, क्या है समाधान?

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Up Primary Teacher vacancy _उत्तर प्रदेश के प्राथमिक स्कूलों में घटता नामांकन और शिक्षक भर्ती की चुनौतियों पर गहन चर्चा। 6 वर्ष की आयु सीमा और एनईपी 2020 के दस्तावेज़ पर सवाल। क्या आयु सीमा में कमी लाकर नामांकन बढ़ाया जा सकता है? जानें बालवाटिका, वैकेंसी, और सरकारी स्कूलों की स्थिति। सरकार से मांग: स्कूल मर्जर रोकें, शिक्षा को बचाएं। पूरी जानकारी और समाधान के सुझाव पढ़ें।


न्यूज़ आर्टिकल (Hindi):

प्राथमिक स्कूलों में नामांकन संकट और शिक्षक भर्ती: 6 वर्ष आयु सीमा पर बहस, क्या है समाधान?

उत्तर प्रदेश के प्राथमिक स्कूलों में नामांकन की घटती संख्या और शिक्षक भर्ती की अनिश्चितता ने शिक्षा व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं। हाल ही में एक चर्चा में डीएलएड छात्रों और शिक्षक भर्ती की मांग करने वालों ने 6 वर्ष की न्यूनतम आयु सीमा को लेकर अपनी चिंता जाहिर की। उनका कहना है कि यह आयु सीमा सरकारी स्कूलों में नामांकन को प्रभावित कर रही है, जिससे शिक्षकों की भर्ती पर भी असर पड़ रहा है।

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6 वर्ष आयु सीमा का विवाद

नई शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 के तहत पहली कक्षा में प्रवेश के लिए न्यूनतम आयु 6 वर्ष निर्धारित की गई है। लेकिन कई अभिभावक अपने बच्चों को 5 वर्ष या उससे कम उम्र में ही निजी इंग्लिश मीडियम स्कूलों में दाखिला दिला रहे हैं। चर्चा में यह सवाल उठा कि जब निजी स्कूल 3-4 वर्ष की आयु में बच्चों को पढ़ा रहे हैं, तो सरकारी स्कूलों में 6 वर्ष की आयु सीमा क्यों? यह आयु सीमा सरकारी स्कूलों के लिए एक बड़ी बाधा बन रही है, क्योंकि अभिभावक निजी स्कूलों की ओर रुख कर रहे हैं।

बालवाटिका की असफलता

एनईपी 2020 के तहत शुरू की गई बालवाटिका योजना भी अपेक्षित परिणाम नहीं दे पा रही है। बालवाटिका में 3-6 वर्ष के बच्चों को प्री-प्राइमरी शिक्षा देने का प्रावधान है, लेकिन अभिभावकों का इसमें विश्वास नहीं बन पा रहा। नतीजा यह है कि बालवाटिका में नामांकन कम है, और पहली कक्षा में 6 वर्ष की आयु सीमा के कारण बच्चे सरकारी स्कूलों से दूर हो रहे हैं।

शिक्षक भर्ती और वैकेंसी का मुद्दा

चर्चा में यह भी सामने आया कि सरकार ने 17,000 शिक्षक भर्तियों का वादा किया था, लेकिन यह वादा कथित तौर पर सिर्फ “चुनावी स्टंट” साबित हुआ। आरटीआई के जवाबों में वैकेंसी की संख्या को लेकर अस्पष्टता बनी हुई है। कभी 51,000, कभी 27,000, तो कभी 10,000 खाली पदों की बात की जाती है, लेकिन ठोस जानकारी का अभाव है। यह सवाल उठ रहा है कि जब बेसिक शिक्षा परिषद और उत्तर प्रदेश शिक्षा चयन आयोग वैकेंसी की स्पष्ट जानकारी नहीं दे रहे, तो अभ्यर्थी कहां जाएं?

स्कूल मर्जर का खतरा

एनईपी 2020 के अनुसार, जिन स्कूलों में छात्र-शिक्षक अनुपात 35:1 से कम है, उन्हें मर्ज किया जा सकता है। उत्तर प्रदेश में कई प्राथमिक स्कूलों में औसत छात्र संख्या 14 है, जिसके कारण मर्जर का खतरा मंडरा रहा है। यह न केवल स्कूलों को बंद करने की ओर इशारा करता है, बल्कि शिक्षकों की नौकरियों पर भी संकट ला रहा है।

समाधान के सुझाव

  1. आयु सीमा में कमी: विशेषज्ञों का सुझाव है कि 6 वर्ष की आयु सीमा को 5.5 वर्ष या उससे कम किया जाए। इससे सरकारी स्कूलों में नामांकन 20-25% तक बढ़ सकता है, जिससे शिक्षक भर्ती के नए अवसर भी खुलेंगे।
  2. बालवाटिका को अनिवार्य करें: 3-4 वर्ष की आयु से बच्चों को बालवाटिका में दाखिला अनिवार्य किया जाए, ताकि वे पहली कक्षा में समय पर पहुंच सकें।
  3. नामांकन बढ़ाने के लिए अभियान: सरकार को सरकारी स्कूलों में अभिभावकों का विश्वास बढ़ाने के लिए जागरूकता अभियान चलाने चाहिए।
  4. वैकेंसी पर पारदर्शिता: सरकार को खाली पदों की स्पष्ट जानकारी देनी चाहिए और भर्ती प्रक्रिया को तेज करना चाहिए।
  5. स्कूल मर्जर पर रोक: प्राथमिक स्कूलों को बंद करने के बजाय, उनकी गुणवत्ता और बुनियादी सुविधाओं में सुधार किया जाए।

सरकार से अपील

चर्चा में शामिल लोगों ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री और शिक्षा विभाग से अपील की कि प्राथमिक स्कूलों को बचाने के लिए ठोस कदम उठाए जाएं। उनका कहना है कि सरकारी स्कूलों का बंद होना सरकार की विश्वसनीयता पर सवाल उठाता है। उत्तर प्रदेश के प्राथमिक स्कूलों ने नासा में वैज्ञानिकों से लेकर आईएएस अधिकारियों तक को तैयार किया है। ऐसे में, इन स्कूलों को बचाना सरकार की जिम्मेदारी है।

सोशल मीडिया पर अभियान

चर्चा के अंत में सुझाव दिया गया कि इस मुद्दे को सोशल मीडिया, खासकर एक्स प्लेटफॉर्म पर, एक अभियान के रूप में उठाया जाए। प्रस्ताव है कि एक निश्चित तारीख को #DecreaseMinimumAge जैसे हैशटैग के साथ ट्रेंड चलाया जाए, ताकि सरकार तक यह मांग पहुंचे।

निष्कर्ष

प्राथमिक स्कूलों में नामांकन और शिक्षक भर्ती का मुद्दा केवल शिक्षा का नहीं, बल्कि सामाजिक और आर्थिक विकास का भी सवाल है। अगर सरकार आयु सीमा, बालवाटिका, और वैकेंसी जैसे मुद्दों पर तुरंत ध्यान दे, तो न केवल सरकारी स्कूलों को बचाया जा सकता है, बल्कि लाखों बच्चों का भविष्य भी संवारा जा सकता है।



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