
उत्तर प्रदेश सरकार की 27,964 प्राइमरी स्कूल बंद करने की योजना ने शिक्षा जगत में हलचल मचा दी है। शिक्षक समाज और विशेषज्ञों ने इसे Right to Education Act का उल्लंघन बताया। गोरखपुर से शुरू हुई इस योजना के पीछे NGO और privatization का हाथ? पढ़ें पूरी खबर।
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नमस्कार, आप पढ़ रहे हैं उत्तर प्रदेश की एक ऐसी खबर जो शिक्षा के भविष्य को लेकर गंभीर सवाल खड़े कर रही है। हाल ही में खबर आई कि राज्य सरकार 27,964 प्राइमरी स्कूलों को बंद करने की योजना बना रही थी। यह खबर नवंबर 2024 में सामने आई, जिसके बाद शिक्षक समाज और बुद्धिजीवियों ने इसका पुरजोर विरोध किया। इस विरोध के दबाव में तत्कालीन शिक्षा निदेशक को स्पष्ट करना पड़ा कि ऐसी कोई योजना नहीं है। लेकिन सवाल यह है कि क्या यह पूरी सच्चाई है?
जानकारी के मुताबिक, सरकार ने चुपके से एक नई योजना शुरू कर दी है। इस योजना के तहत प्रदेश के 75 जिलों में प्रत्येक विकास खंड में एक NGO, अशोका लीलैंड, को जिम्मेदारी सौंपी गई है। इसकी शुरुआत गोरखपुर के खजनी ब्लॉक से हुई, जहां मुख्यमंत्री ने इसे लॉन्च किया। यह मॉडल Jio की तर्ज पर काम करता है—पहले फ्री में सुविधाएं, फिर भारी मुनाफा। लेकिन इसका असर क्या होगा?
शिक्षा का अधिकार अधिनियम (RTE) पर खतरा
2009 में मनमोहन सिंह सरकार द्वारा लागू Right to Education Act के तहत 6 से 14 साल के बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार दिया गया। इस कानून का मकसद था कि हर गांव, हर मजरे में प्राइमरी स्कूल हों, ताकि कोई भी बच्चा शिक्षा से वंचित न रहे। लेकिन अब इन स्कूलों को बंद करने की योजना RTE की हत्या के समान है। विशेषज्ञों का कहना है कि यह Article 21A का उल्लंघन है, जो शिक्षा को मौलिक अधिकार बनाता है।
स्कूल बंद करने का कारण क्या?
सरकार का तर्क है कि स्कूलों में बच्चों की संख्या कम है। लेकिन सवाल यह है कि बच्चों की संख्या क्यों कम हुई? इसका जवाब है—लगभग 19 लाख शिक्षकों के पद खाली हैं। जब पढ़ाने वाला ही नहीं होगा, तो बच्चे पढ़ेंगे कैसे? जो शिक्षक हैं, वे मिड-डे मील और अन्य प्रशासनिक कामों में उलझे रहते हैं। इसके अलावा, प्राइवेट स्कूलों और कोचिंग सेंटरों का बढ़ता चलन भी एक बड़ा कारण है। गरीब बच्चे प्राइवेट स्कूलों की फीस नहीं दे सकते, और सरकारी स्कूलों की हालत बद से बदतर होती जा रही है।
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गोरखपुर से शुरूआत, पूरे प्रदेश में खतरा
गोरखपुर, जो मुख्यमंत्री का गृह जिला है, वहां से इस योजना की शुरुआत हुई। खजनी ब्लॉक में पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर NGO को स्कूलों का प्रबंधन सौंपा गया। लेकिन यह सिर्फ शुरुआत है। अगर यह मॉडल पूरे प्रदेश में लागू हुआ, तो सरकारी स्कूल पूरी तरह निजी हाथों में चले जाएंगे। इससे न केवल शिक्षा का स्तर गिरेगा, बल्कि गरीब बच्चों का भविष्य भी अंधेरे में डूब जाएगा।
शिक्षक समाज का आक्रोश
शिक्षक और प्रोफेसर जैसे संपूर्णानंद मल जी ने इस योजना को शिक्षा के खिलाफ साजिश करार दिया है। उनका कहना है कि यह National Education Policy (NEP) 2020 का हिस्सा है, जिसका मकसद शिक्षा का निजीकरण करना है। NEP 2020 के तहत सरकारी स्कूलों और विश्वविद्यालयों को धीरे-धीरे प्राइवेट सेक्टर के हवाले किया जा रहा है। मल जी ने चेतावनी दी कि अगर यह योजना लागू हुई, तो वे कोर्ट में PIL दायर करेंगे और सड़कों पर विरोध करेंगे।
शिक्षामित्र और अनुदेशकों का भविष्य अधर में
इस योजना का सबसे बड़ा असर शिक्षामित्रों और अनुदेशकों पर पड़ेगा। पिछले कई सालों से ये लोग नियमितीकरण और वेतन वृद्धि की मांग कर रहे हैं। लेकिन स्कूलों के बंद होने से उनकी नौकरी पर ही संकट मंडरा रहा है। शिक्षक समाज का कहना है कि सरकार ने उनके साथ धोखा किया है।
समाधान क्या है?
विशेषज्ञों का मानना है कि शिक्षा को बचाने के लिए निम्नलिखित कदम उठाए जाने चाहिए:
- निजीकरण पर रोक: सभी प्राइवेट स्कूलों और कोचिंग सेंटरों का राष्ट्रीयकरण किया जाए।
- मुफ्त शिक्षा: प्राइमरी से उच्च शिक्षा तक मुफ्त होनी चाहिए।
- शिक्षकों की भर्ती: खाली पड़े 19 लाख शिक्षक पदों को तुरंत भरा जाए।
- कोचिंग पर बैन: कोचिंग सेंटरों को अपराध घोषित किया जाए, क्योंकि ये समानता के अधिकार का उल्लंघन करते हैं।
- एक समान सिलेबस: पूरे देश में एक ही सिलेबस लागू हो, ताकि अमीर-गरीब का भेद खत्म हो।
निष्कर्ष
उत्तर प्रदेश में प्राइमरी स्कूलों को बंद करने की योजना न केवल शिक्षा के अधिकार का उल्लंघन है, बल्कि यह देश के भविष्य के साथ खिलवाड़ है। अगर शिक्षा नहीं होगी, तो अंधविश्वास और पिछड़ापन बढ़ेगा। यह समय है कि शिक्षक, अभिभावक और समाज एकजुट होकर इस साजिश का विरोध करें। कोर्ट में PIL से लेकर सड़कों पर सत्याग्रह तक, हर संभव कदम उठाने की जरूरत है।
शिव कुमार जी, जैसा कि आपने अपने चैनल पर इस मुद्दे को उठाया, यह हम सबके लिए एक जागरूकता का मौका है। आइए, शिक्षा को बचाने के लिए एकजुट हों। नमस्कार!

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