
भारत में आरक्षण एक महत्वपूर्ण सामाजिक न्याय का मुद्दा रहा है। हाल ही में, कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने “नॉट फाउंड सूटेबल” (NFS) को लेकर बीजेपी सरकार पर आरोप लगाए हैं। उनका कहना है कि सरकार एससी, एसटी और ओबीसी वर्ग के योग्य उम्मीदवारों को जानबूझकर NFS घोषित करके आरक्षित पदों को खाली रख रही है। लेकिन सच्चाई क्या है? आइए, इस मुद्दे को विस्तार से समझते हैं।
एनएफएस (NFS) क्या है?
NFS (Not Found Suitable) का मतलब है कि कोई उम्मीदवार किसी पद के लिए योग्य नहीं पाया गया। यह शब्द भर्ती प्रक्रिया में तब इस्तेमाल होता है जब:
- उम्मीदवार इंटरव्यू या लिखित परीक्षा में अनुत्तीर्ण हो जाता है।
- उसकी योग्यता या क्षमता को पद के अनुरूप नहीं माना जाता।
- आरक्षित श्रेणी के लिए कोई योग्य उम्मीदवार नहीं मिलता, तो पद खाली रह जाता है।
सरकार का नियम:
- अगर कोई आरक्षित श्रेणी (SC/ST/OBC) का उम्मीदवार NFS पाया जाता है, तो उस पद को जनरल कैटेगरी में नहीं दिया जा सकता।
- अगली भर्ती तक वह पद खाली रहता है।
राहुल गांधी के आरोप क्या हैं?
राहुल गांधी ने दावा किया कि:
- दिल्ली यूनिवर्सिटी में 60% प्रोफेसर और 30% एसोसिएट प्रोफेसर के आरक्षित पद NFS के नाम पर खाली हैं।
- आईआईटी और केंद्रीय विश्वविद्यालयों में भी यही स्थिति है।
- NFS का इस्तेमाल SC/ST/OBC को शिक्षा और नौकरियों से वंचित करने के लिए किया जा रहा है।
उन्होंने इसे “मनुवादी साजिश” बताया और कहा कि मोदी सरकार आरक्षण को कमजोर कर रही है।
सरकार का जवाब और आंकड़े
1. दिल्ली यूनिवर्सिटी (DU) के आंकड़े
- 2022 के आंकड़ों के अनुसार:
- OBC: 193 पद खाली
- SC: 106 पद खाली
- ST: 57 पद खाली
- EWS & दिव्यांग: 109 पद खाली
2. देशभर की केंद्रीय यूनिवर्सिटीज (2025 तक)
श्रेणी | स्वीकृत पद | खाली पद |
---|---|---|
OBC | 3,652 | 788 |
SC | 2,315 | 788 |
ST | 1,054 | 472 |
3. नॉन-टीचिंग पदों की स्थिति
श्रेणी | स्वीकृत पद | खाली पद |
---|---|---|
OBC | 4,495 | 1,098 |
SC | 2,013 | 1,011 |
ST | 3,409 | 491 |
शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान का दावा:
- “2019 में ‘सेंट्रल एजुकेशन इंस्टीट्यूशन्स रिजर्वेशन एक्ट’ लाकर NFS प्रथा को खत्म कर दिया गया।”
- “कांग्रेस के शासनकाल में ही NFS की प्रथा चलन में आई, जिसे मोदी सरकार ने बदला।”
क्या NFS आरक्षण खत्म करने का हथियार है?
राहुल गांधी का पक्ष:
- “NFS का दुरुपयोग हो रहा है।”
- “SC/ST/OBC उम्मीदवारों को जानबूझकर असफल घोषित किया जाता है।”
- “आरक्षित पदों को जनरल कैटेगरी में नहीं दिया जा सकता, लेकिन खाली रखा जाता है।”
सरकार का पक्ष:
- “NFS अब इतिहास की बात है, 2019 के कानून ने इसे खत्म कर दिया।”
- “खाली पदों को भरने के लिए निरंतर प्रयास हो रहे हैं।”
- “कांग्रेस के समय में ही यह समस्या शुरू हुई।”
क्या सच है?
- NFS का दुरुपयोग हो सकता है, लेकिन यह प्रथा पुरानी है।
- खाली पदों की संख्या बड़ी है, लेकिन सरकार का दावा है कि इसे भरने की प्रक्रिया चल रही है।
- राजनीतिक विवाद के कारण यह मुद्दा गरमाया हुआ है।
सवाल यह है:
- क्या वाकई NFS के जरिए आरक्षण को कमजोर किया जा रहा है? या फिर यह सिर्फ एक प्रशासनिक प्रक्रिया है जिसका राजनीतिकरण हो रहा है? आप क्या सोचते हैं? कमेंट में बताएं!
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