
पेंशन नियमों में बदलाव की संभावना! सुप्रीम कोर्ट के 1986 के ऐतिहासिक फैसले और 8th Pay commission की सिफारिशों से पेंशनर्स को मिल सकती है राहत। जानें कम्यूटेशन रिकवरी, केरल-गुजरात मॉडल और वित्त मंत्रालय के रुख के बारे में।
पेंशनर्स के लिए बड़ी खबर: क्या जल्द बदलेंगे पेंशन नियम?
क्या आप या आपके परिवार में कोई केंद्रीय कर्मचारी, जवान, या रेलवे पेंशनर हैं? अगर हां, तो यह खबर आपके लिए बेहद महत्वपूर्ण है। पेंशन नियमों में संशोधन की संभावना जताई जा रही है, जिससे लाखों पेंशनर्स को बड़ी राहत मिल सकती है। सुप्रीम कोर्ट के एक ऐतिहासिक फैसले, पांचवें वेतन आयोग की सिफारिशों, और कुछ राज्यों के मॉडल के बावजूद केंद्र सरकार का रुख अभी स्पष्ट नहीं है। आइए, इस मुद्दे को आसान भाषा में समझते हैं।
सुप्रीम कोर्ट का 1986 का ऐतिहासिक फैसला
साल 1986 में सुप्रीम कोर्ट ने कॉमन कॉज केस में पेंशन बहाली को लेकर एक महत्वपूर्ण फैसला दिया था। कोर्ट ने साफ कहा था कि पेंशन कम्यूटेशन (पेंशन का एक हिस्सा एकमुश्त लेने की प्रक्रिया) की रिकवरी 15 साल तक नहीं होनी चाहिए। इसके बावजूद, 38 साल बाद भी केंद्रीय पेंशनर्स को 15 साल तक रिकवरी का सामना करना पड़ रहा है। सवाल यह है कि क्या सरकार सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को नजरअंदाज कर रही है?
पांचवें वेतन आयोग की सिफारिश
1996 में लागू हुए पांचवें वेतन आयोग ने भी पेंशन कम्यूटेशन की रिकवरी को 15 साल से घटाकर 12 साल करने की सिफारिश की थी। आयोग के पैरा 136.10 (पेज 1822) में यह स्पष्ट उल्लेख है। लेकिन, केंद्र सरकार ने इस सिफारिश को न तो स्वीकार किया और न ही खारिज किया। नतीजा? पेंशनर्स आज भी लंबी रिकवरी अवधि झेल रहे हैं।
केरल और गुजरात का मॉडल
कुछ राज्य सरकारें इस मामले में केंद्र से आगे निकल चुकी हैं:
- केरल: 1983 से ही केरल सरकार ने पेंशन कम्यूटेशन की रिकवरी अवधि को 12 साल कर दिया है। केरल सर्विस रूल्स (वॉल्यूम 2, पार्ट 3, 6ठा संस्करण, 2017) में इसका स्पष्ट उल्लेख है।
- गुजरात: गुजरात सरकार 13 साल बाद कम्यूटेशन रिकवरी बंद कर पूर्ण पेंशन बहाल कर देती है।
जब राज्य सरकारें कम अवधि में पेंशन बहाली कर सकती हैं, तो केंद्र सरकार ऐसा क्यों नहीं कर रही?
आठवां वेतन आयोग और वित्त मंत्रालय का रुख
मार्च 2025 में स्कोबावा स्टैंडिंग कमेटी ऑफ वॉलंटरी एजेंसी की बैठक में यह मुद्दा जोर-शोर से उठा। लेकिन, वित्त मंत्रालय ने इसे आठवें वेतन आयोग के लिए टाल दिया। मंत्रालय का कहना है कि इस मसले का समाधान आठवें वेतन आयोग की सिफारिशों के आधार पर ही होगा। इससे पेंशनर्स में निराशा है, क्योंकि यह मसला दशकों से लटका हुआ है।
पेंशनर्स की अनदेखी क्यों?
पेंशनर्स ने देश की सेवा में अपनी जवानी और मेहनत लगाई, लेकिन उनकी जायज मांगों को बार-बार टाला जा रहा है। दूसरी ओर, सांसदों और विधायकों की पेंशन व भत्ते बिना किसी आंदोलन या वेतन आयोग की सिफारिश के बढ़ जाते हैं। यहां तक कि न्यायाधीशों ने भी वन रैंक वन पेंशन को अपने लिए लागू करवा लिया। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या पेंशनर्स अपनी आवाज को एकजुट करके इस मांग को पूरा नहीं करवा सकते?
डिपार्टमेंट ऑफ पेंशन की सिफारिश
साल 2014 में डिपार्टमेंट ऑफ पेंशन एंड पेंशनर्स वेलफेयर ने भी कम्यूटेशन रिकवरी अवधि कम करने की सिफारिश की थी। इसके बावजूद, कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया। पेंशनर्स अब चाहते हैं कि उनकी यह मांग आठवें वेतन आयोग में प्राथमिकता से हल हो।
पेंशनर्स क्या कर सकते हैं?
- एकजुट हों: पेंशनर्स को यूनियन बनाकर अपनी मांगों को सरकार तक पहुंचाना होगा।
- जागरूकता फैलाएं: इस मुद्दे को सोशल मीडिया, व्हाट्सएप, और अन्य प्लेटफॉर्म्स पर शेयर करें।
- दस्तावेज देखें: सुप्रीम कोर्ट का फैसला, केरल-गुजरात के नियम, और वेतन आयोग की सिफारिशें पढ़ें। ये दस्तावेज पेंशनर्स के व्हाट्सएप चैनलों पर उपलब्ध हैं।
निष्कर्ष
पेंशन नियमों में बदलाव की उम्मीद अभी बाकी है। सुप्रीम कोर्ट, वेतन आयोग, और कुछ राज्यों के उदाहरण पेंशनर्स के हक में हैं, लेकिन केंद्र सरकार का ढुलमुल रवैया निराशाजनक है। क्या आठवां वेतन आयोग पेंशनर्स की इस जायज मांग को पूरा करेगा? यह सवाल हर पेंशनर के मन में है।
अपनी राय कमेंट करें और इस खबर को ज्यादा से ज्यादा पेंशनर्स तक शेयर करें। जय हिंद, जय भारत!
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